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सामूहिक उपासना

“अस्तित्व के संसार में प्रार्थना से मधुर वस्तु और कुछ भी नहीं है। मनुष्य को सदा प्रार्थना और अनुनय की अवस्था में रहना चाहिए। सर्वाधिक आशिर्वादित स्थिति, प्रार्थना व विनती की स्थिति होती है। प्रार्थना ईश्वर के साथ वार्तालाप है। ईश्वर से वार्तालाप से बढ़कर कोई भी उपलब्धि या इससे मधुर और कोई भी स्थिति नहीं है।”

- अब्दुल-बहा

पूरे भारत में गांवों और पास-पड़ोस के समुदायों में सामूहिक उपासना के लिए बैठकों का प्रस्फुटन देखने को मिल रहा है। प्रार्थनाएं साझा करने, पवित्र ग्रंथों के पाठों का अध्ययन करने और अपने जीवन में उनके अभिप्रायों के बारे में परामर्श करने के लिए हजारों लोग हर महीने, हर सप्ताह और यहां तक कि हर दिन विभिन्न परिवेशों में, घरों में, एकत्रित होते हैं। विभिन्न आयुवर्गों और पृष्ठभूमियों के मित्रों के ये छोटे-छोटे सम्मिलन उनमें शामिल होने वाले मित्रों के आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध बनाते हैं, साथ ही, किसी स्थानविशेष में एकता और समुदाय के आध्यात्मिक बन्धनो को एक साथ निकटता से जोड़ते हैं।

हालांकि बहाई समुदाय के पास मन्दिर हैं (इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है नई दिल्ली स्थित बहाई उपासना मन्दिर — जिसे ’कमल मन्दिर’ के नाम से भी जाना जाता है), जहां सभी पृष्ठभूमियों के लोग प्रार्थना और ध्यान के लिए एकत्रित होते हैं, किंतु बहाई लोग यह भी विश्वास करते हैं कि ऐसी कोई भी जगह आशीर्वादित और मन्दिर के ही समान है जहां लोग परमात्मा के स्मरण के लिए एकत्रित होते हैं। बहाई धर्म में कोई पंडित-पुरोहित नहीं होता, इसलिए अपने-अपने समुदाय की आध्यात्मिक समृद्धि सुनिश्चित करने का दायित्व प्रत्येक बहाई पर है, और भक्तिपरक सभा का आयोजन करना ऐसा ही एक तरीका है जिससे व्यक्ति और परिवार अपना यह दायित्व निभा सकते हैं।