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सामाज के परिसंवादों में भागीदारी

“तुम लोग जिस युग में रहते हो उसकी जरूरतों से अपना चिंतापूर्ण सरोकार बनाए रखो और अपने विचारों को उसकी अत्यावश्यक मांगों और वांछित विषयों की ओर केन्द्रित करो।”

- बहाउल्लाह

आज जब मानवजाति अपनी प्रौढ़ता के चरण की ओर अग्रसर है, सामाजिक अस्तित्व के अनेक पहलुओं को रूपांतरित किए जाने की जरूरत है और उनमें से कुछ हैं: मानवजाति के सामने खड़े बुनियादी मुद्दों के बारे में हमारी अभिवृत्तियां, विचार और अवधारणाएं। इस तरह, विश्वव्यापी बहाई समुदाय के सरोकार और सीखने के लिए एक प्रमुख क्षेत्र है विचार के स्तर पर होने वाले इस रूपांतरण की प्रक्रिया में योगदान देना। बहाई समुदाय मानवजाति की भलाई से जुड़े अनेक परिसंवादों में भागीदारी निभाना सीख रहे हैं, जैसे: स्त्री-पुरुष की समानता, शांति, अभिशासन, जन स्वास्थ्य, और विकास, इत्यादि।

इन परिसंवादों में भाग लेने का उद्देश्य यह नहीं है कि दूसरों को किसी विषय पर बहाई दृष्टिकोण को ही स्वीकार करने के लिए मनाया जाए। इस क्षेत्र में किए जाने वाले प्रयासों का मकसद जन-सम्पर्क गतिविधि अथवा किसी शैक्षणिक उपक्रम के रूप में भी नहीं है। बल्कि बहाई लोग सीखने की मुद्रा में रहने और सच्चे संवाद में संलग्न होने के लिए प्रयासरत हैं। इसलिए, वे मानवजाति के सम्मुख प्रस्तुत किन्हीं खास समस्याओं – जैसे जलवायु परिवर्तन, महिलाओं का स्वास्थ्य, खाद्यान्न उत्पादन और गरीबी उन्मूलन – के लिए कोई विशिष्ट समाधान प्रस्तुत करने हेतु आगे नहीं बढ़ते। इसके बावजूद, विश्व भर के अपने-अपने परिवेशों में, सभ्यता के विकास की दिशा में बहाउल्लाह की शिक्षाओं को क्रियान्वित करने के अपने प्रयास में बहाईयों ने जो कुछ भी सीखा-समझा है उसे वे दुनिया के साथ साझा करने और अन्य समान विचारधारा वाले व्यक्तियों एवं समूहों से सीखने को उत्सुक हैं।

स्त्री-पुरुष की समानता, सामाजिक-आर्थिक विकास, समाज में धर्म की भूमिका, बच्चों के अधिकार, तथा युवा और सामाजिक रूपांतरण जैसे विषयों पर आयोजित परिसंवादों में भाग लेने का भारत के बहाई समुदाय का एक समृद्ध इतिहास रहा है।